गीतकार की कलम
Monday, August 27, 2018
मदिरा भरती है सुधियाँ की साकी
›
कहने को तो सब कुछ ही है फिर भी मन रहता एकाकी सुबह शाम पीड़ा की मदिरा भरती है सुधियाँ की साकी आइना जो दिखे सामने उसके चित्र मनोहर सा...
Monday, August 20, 2018
हम बिल्कुल स्वच्छन्द नहीं है
›
कहने को तो लगा कहीं पर कोई भी प्रतिबन्ध नहीं है लेकिन जाने क्यों लगता है हम बिल्कुल स्वच्छन्द नहीं है घेरे हुए अदेखी जाने कितनी है ल...
Tuesday, August 14, 2018
फूल सूखे किताबों में मिलते नहीं
›
शैल्फ में ही रखी पुस्तकें रह गई , उंगलियां छू के अब पृष्ठ खुलते नहीं आज करने शिकायत लगी है हवा , फूल सूखे किताबों में मिलते...
Monday, January 8, 2018
हर बरस करते आए यही कामना
›
हर बरस करते आए यही कामना शुभ नया वर्ष हो आपके वास्ते स्वप्न साकार हो सारे देखे हए और फूलों लदे हों सभी रास्ते और हर बार ढलते हुए वर्ष ने ...
Monday, October 23, 2017
ज्योति के पर्व पर 2017
›
आज धनवंतरी के कलश से छलक भेषजों की सुधा अञ्जुरी में भरे लक्ष्मियाँ धान्य, धन और गृह की सदा आपका पंथ अनुकूल करती रहें स्वर्ण मुद्राओं की खनख...
Monday, September 18, 2017
बात रह जाती अधूरी
›
मुदित मन ने तार छेड़े प्रीत के संध्या सकारे गंध भर कर के उमंगों में गली आंगन पखारे सांस में सरगम पिरो अनुराग वाली गीत गाये मीत की आराध...
Sunday, July 30, 2017
कुछ पुराने पेड़
›
कुछ पुराने पेड़ बाकी है अभी उस गांव में हो गया जब एक दिन सहसा मेरा यह मन अकेला कोई बीता पल लगा देने मुझे उस पार हेला दूर छूटे चिह्न पग के...
›
Home
View web version