tag:blogger.com,1999:blog-1973270170645472967.post1946181197338924738..comments2023-10-07T17:46:39.270+05:30Comments on गीतकार की कलम: लुढ़का हुआ हाशिये परGeetkaarhttp://www.blogger.com/profile/16969431721717308204noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-1973270170645472967.post-68106069387911706202008-02-05T18:59:00.000+05:302008-02-05T18:59:00.000+05:30भाई पंकजजीआपने बिल्कुल सही कहा. अंतिम दो पंक्तियां...भाई पंकजजी<BR/><BR/>आपने बिल्कुल सही कहा. अंतिम दो पंक्तियां विशेष तौर पर समीर भाई को इंगित करके लिखी गईं थीं. ( यों तो पूरा गीत ही साथी लेखकों की निष्क्रियता को लक्ष्य करते हुए है) गीत के साथ लिखी हुईं मूल पंक्तियां हैं<BR/><BR/>किन्तु सांस के ॠण चुकता करते करते<BR/>आँखों का सपना आधा रह जाता है<BR/><BR/>आपकी पारखी नजर को सादर प्रणाम.<BR/><BR/>नीरजजी, पारुलजी तथा समीर भाई<BR/><BR/>आपके स्नेह का आभार.राकेश खंडेलवालhttps://www.blogger.com/profile/08112419047015083219noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1973270170645472967.post-7498827756588999462008-02-05T17:07:00.000+05:302008-02-05T17:07:00.000+05:30sundar....चाह रहा था मैं मेघों के उच्छवासोंको रंगी...sundar....चाह रहा था मैं मेघों के उच्छवासों<BR/>को रंगीन बना कर फ़ागुन बरसा दूँ<BR/>बाहों में सतरंग लपेटे वनफूलों को<BR/>कर छंद, द्वार पर लाकर बिखरा दूँ..sundarपारुल "पुखराज"https://www.blogger.com/profile/05288809810207602336noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1973270170645472967.post-38459585318906413672008-02-05T16:42:00.000+05:302008-02-05T16:42:00.000+05:30खो बैठे पहचान अकेले रह रह करकोई अर्थ नहीं छू पाया ...खो बैठे पहचान अकेले रह रह कर<BR/>कोई अर्थ नहीं छू पाया तन मन को<BR/>एकाकीपन के अजगर की कुंडलियां<BR/>रही निगलती उदासीन सी सरगम को<BR/>अरे आप ऐसे कैसे कह रहे हैं??? अभी हम हैं ना.....उदासी को किनारे कीजिये और मुस्कुराती हुई रचना लिखिए...आप तो शब्द और भाव के जादूगर हैं...वाह...वा...<BR/>नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1973270170645472967.post-47519855165240641732008-02-05T15:13:00.000+05:302008-02-05T15:13:00.000+05:30भाई जीबहुत प्रणाम करता हूँ. अरे आप तो सिर्फ कलम उठ...भाई जी<BR/><BR/>बहुत प्रणाम करता हूँ. अरे आप तो सिर्फ कलम उठा लें तो काव्य संवर जाता है.<BR/><BR/>बस, जारी रहें. :)Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1973270170645472967.post-68333931882409039332008-02-05T12:44:00.000+05:302008-02-05T12:44:00.000+05:30अनुपम है गीत किन्तु छोटा मुह बड़ी बात कहने का साह...अनुपम है गीत किन्तु छोटा मुह बड़ी बात कहने का साहस कर रहा हूंकि <BR/>किन्तु तुम्हारे बिना, चना मैं एकाकी<BR/>और भाड़ फिर से साबुत रह जाता है<BR/>ये पंक्तियां परिमल काव्य के हिसाब से कुछ कठोर हैं और गीत के सौंदर्य को कम कर रहीं हैं ।जिस छंद में इनका उपयोग किया गया है वह अनूठा छंद है किन्तु इन पंक्तियों में चूंकि कुछ शब्द और प्रतीक वैसे नहीं हैं अत: ये पंक्तियां छंद से अलग लग रहीं हैं । क्षमा क्षमा और क्ष्मा के साथपंकज सुबीरhttps://www.blogger.com/profile/16918539411396437961noreply@blogger.com